दूसरी शादी
नास्तिक आदमी को हवन कैसे अच्छा लग सकता है। पर मजबूरी थी। सासुमाँ के पण्डितजी का कहना था कि मेरी कुंडली में दूसरी शादी का योग है। क्योंकि पत्नी की जान को खतरा था तो ना चाहते हुए भी महामृत्युंजय जाप कराना जरूरी हो गया।
लघु कथाओं का अर्थ अत्यंत छोटी कहानियाँ नहीं हैं। कहानी कम शब्दों में कही गईं हैं पर किसी भी मायने में छोटी नहीं है। अल्प शब्दों में बहुत कुछ कहने की कोशिश है ये लघु कथाएँ।
नास्तिक आदमी को हवन कैसे अच्छा लग सकता है। पर मजबूरी थी। सासुमाँ के पण्डितजी का कहना था कि मेरी कुंडली में दूसरी शादी का योग है। क्योंकि पत्नी की जान को खतरा था तो ना चाहते हुए भी महामृत्युंजय जाप कराना जरूरी हो गया।
करन अर्जुन केवल फिल्मों में नहीं होते। दोगाँव की कल्याणी भी, फिल्म वाली दुर्गा की तरह, इंतज़ार कर रही है अपने अर्जुन का। रील की दुनिया से फर्क बस इतना है की वह जब करन अर्जुन को लेकर बागेश्वर मेले गई तो वहाँ केवल अर्जुन खोया, करन नहीं।
सुना उस पहाड़ के नीचे ताम्बे का भंडार मिला है जिसे निकालना देश के विकास के लिए जरूरी है। वैसे यह विकास कबीर ने कभी नहीं माँगा। माँग कर करता भी क्या? विकास इतना गतिवान होता ही नहीं की दूर दराज़ के इलाकों तक पहुँच सके।
शहरों को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता कि उसका कुछ उसके काम ना आए इसी लिए शहर की सरकार सोचने लगी कि क्यों ना तालाब को एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट बना दिया जाए। पर एक समस्या थी। तालाब में बहुतेरे मगरमच्छ थे।
बेताल को लाने के लिए एक बार फिर विक्रम वापस चल पड़ा। बेताल को लक्ष्य तक पहुँचाने से ज्यादा विक्रम को उस कहानी का इंतज़ार था जिसमें चुनाव के लिए कोई तीसरा विकल्प भी हो।
स्कूल बस में हर रोज किसी न किसी अभिभावक की बस ड्यूटी लगती है। दिन की ड्यूटी अमूमन शिक्षक निभाते हैं क्योंकि अधिकाँश माँ बाप नौकरी पेशा हैं। हर महीने के पहले सोमवार को सुधीर की बारी आती है।
सुंदर पहाड़ी रास्तों पर चलते हुए अक्सर तन थक जाता है पर मन नहीं। इसलिए जैसे ही मुझे सुन्दर बुरांश के फूल दिखे मैं अपनी सारी थकान भूल सा गया और अपने बालकपन में लगभग फुदकते हुए जोर से बोल बैठा, “अहा, कितना सुन्दर फूल है! “
दो छोटे खेतों, एक भैंस, दो गाय और छह बकरियों के कारण गाँव शहर न जा सका। और गाँव तथा पास के पहाड़ी शहर में नदारत स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते शहर गाँव नहीं आ पाया। इसलिए तय हुआ की शिवराज, अपनी पत्नी सावित्री, और 20 दिन के बच्चे के साथ गाँव आएगा ताकि 21वें दिन नामकरण हो सके।
आज से जात बिरादरी उतना मायने नहीं रखेगी क्योंकि ग्राम और जिला पंचायत के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। पर यह बात शराबी नहीं जानते इसलिए अभी भी अँधेरे को, पेड़ों को और हवा को गालियाँ देते हुए घूम रहे हैं। इनमें से कई, कई दिनों से नशे में है। एक निजी निर्णय का इतना लाभ कभी कभार ही मिलता है।
हैरी की एक छोटी सी दुकान है चौराहे पर। वो पैदा तो हरिया हुआ था पर जब परिवार ईसाई बना तो उसका नाम हरिया से हैरी हो गया। पिताजी हरदा हेनरीदा हो गए पर ईजा ईजा ही रही।