सत्येन्द्र – वृतान्त 10
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अगले दिन सुबह की फ्लाईट से अलंकार और मेनका दिल्ली पहुँचे। उन्होंने अलंकार के घर पर सामान रखा और फिर पुलिस थाने चले गए। थाने में खलबली मच गई। सत्येन्द्रजी पर बलात्कार का आरोप? कोई मानने को तैयार नहीं था। बीते वर्षों में सत्येन्द्र ने बहुत नाम कमा लिया था। हर हफ्ते अखबार में कुछ ना कुछ छपता रहता था सत्येन्द्र और उसके काम के बारे में।
थानाध्यक्ष को आना कानी करते देख अलंकार ने अपना विजिटिंग कार्ड से थमा दिया। वकालत की एक बड़ी फर्म में काम कर रहे वकील को यूँ टालना खतरे से खाली नहीं था इसलिए प्राथमिक रिपोर्ट लिख दी गई। कागजी कार्यवाही पूर्ण होने पर अलंकार थानाध्यक्ष से बोला, “मुझे लगता है मीडिया परेशान करेगी इसलिए शायद मेनका किसी दूसरे शहर चली जाए। आपको जो स्टेटमेंट रिकॉर्ड करने हैं वे आज कल में ही कर दीजिए प्लीज!”
“नहीं, मैं कहीं नहीं जा रही।”, मेनका तुरंत बोली। अलंकार ने उसकी ओर देखा और फिर थानाध्यक्ष की ओर मुड़ते हुए बोला, “कब गिरफ्तार करेंगे आप उसको?”
“आज ही!”, थानाध्यक्ष बोला।

शाम ढलने से पहले सत्येन्द्र गिरफ्तार हो चुका था। मीडिया में सनसनी फैल गई। बलात्कारी तो अक्सर अनपढ़, गरीब या गुंडा होता है पर अब सभ्य समाज में भी यह होने लगा? जितने लोग उतने सवाल, उतनी अटकलें। स्नेहलता के तो पैरों तले जमीन खिसक गई थी। बलात्कारियों के खिलाफ उसने कई बार मुहीम छेड़ी थी। महिलाओं के हकों के लिए लड़ने को वह हमेशा तत्पर रहती थी। और आज उसका अपना सत्येन्द्र… यह कैसे हो सकता है?
यही सवाल उसने सत्येन्द्र से किया, जब वह उससे मिलने जेल पहुँची। उसके साथ उनकी वकील मित्र प्रीति भी थी। सत्येन्द्र ने बिना किसी टालमटोल के सारी बातें स्नेहलता को बता दी। वह बोलता जा रहा था और स्नेहलता के चेहरे का रंग सफेद पड़ता जा रहा था। उस रात की बात बताते हुए सत्येन्द्र बोला, “हम हमेशा वैसे ही शुरुआत करते थे। उसे अच्छा लगता था कि मैं जबरदस्ती करूँ। वह मना करती रही पर मैं रुका नहीं। मुझे पता नहीं था कि…”, यह कहते हुए सत्येन्द्र रोने सा लगा। सत्येन्द्र को ढाँढ़स देने के लिए स्नेहलता से हाथ स्वतः आगे बढ़े पर उसने अचानक अपने बढ़ते हाथों को पीछे खींच लिया।
“तुमने मुझे निराश किया है सत्येन्द्र। पर मैं अब भी तुम पर विश्वास करती हूँ इसलिए तुम्हें गलत सजा नहीं होने दूंगी।” फिर प्रीति की ओर देखते हुए बोली, “बेल तो हो जाएगी ना प्रीति?”
“हाँ, हो तो जाएगी पर थोड़ा वक्त लगेगा। तुम टूटना मत सत्येन्द्र, सब ठीक हो आएगा।”, यह कहते हुए प्रीति जाने के लिए उठ गई।
सत्येन्द्र को 14 दिन की पुलिस हिरासत में रखने ने बाद अदालत ने उसे 14 दिन न्यायायिक हिरासत में रखने का फरमान जारी किया। हिरासत से बाहर निकलने में सत्येन्द्र को पूरे दो महीने लग गए। मामला बलात्कार का था, और ऊपर से हाई प्रोफाइल, इसलिए अदालत की कार्यवाही तेजी से चल रही थी। स्नेहलता ने प्रीति को साफ़ तौर पर कह रखा था की पीड़िता के चरित्र पर कोई कीचड़ ना उछाला जाए। प्रीति बोली, “मैं कब उछालती हूँ कीचड़ स्नेहा। मुझे तो खुद इस बात से चिढ़ है। वैसे मेरे सारे मुक़दमे पीड़िता की ओर से होते हैं पर तुम्हारी दोस्ती के चलते पहली बात किसी आरोपी का मुकदमा लड़ रही हूँ।”
“थैंक्स प्रीति! बहुत अकेला और थका हुआ महसूस करती हूँ आजकल। तुम न होती तो मेरा ना जाने क्या होता।”
फास्ट ट्रैक कोर्ट में होने के बावजूद मामला महीनों तक खींचा। प्रीति ने यह साबित करने के लिए पूरी जान लगा दी कि हादसा हुआ ही नहीं था। उसके लिए भी यह थोड़ा नया सा अनुभव था क्योंकि वह वकील होने के बावजूद अमूमन झूठ से कन्नी काट लेती थी। सत्येन्द्र को बचाने का कोई और रास्ता ही नहीं था। पर सारा मामला सत्येन्द्र के लिखे ईमेल में जा कर अटक गया और फिर वहीं अटका रहा। प्रीति के लिए उसे झुठलाना मुश्किल पड़ गया। सत्येन्द्र को जेल जाने से अब कोई नहीं बचा सकता था।