दूसरी शादी

नास्तिक आदमी को हवन कैसे अच्छा लग सकता है। पर मजबूरी थी। सासुमाँ के पण्डितजी का कहना था कि मेरी कुंडली में दूसरी शादी का योग है। क्योंकि पत्नी की जान को खतरा था तो ना चाहते हुए भी महामृत्युंजय जाप कराना जरूरी हो गया।

जाप के लिए जागेश्वर के अच्छी कौन सी जगह हो सकती थी। हवन खत्म हो गया था। पण्डितजी और पत्नीजी सामान समेट रहे थे और मैं अपनी टाँगें। पलथी मार कर जमीन पर दस साल बाद बैठा था। मंदिर प्रवेश द्वार के पास चहलकदमी करते हुए मुझे यकायक एक शवयात्रा में कुछ जाने पहचाने चेहरे दिखे।

“अरे, ये तो गीता के पापा हैं?”

शवयात्रा में शामिल एक लड़के को रोक कर पूछा तो मालूम पड़ा की गीता की शवयात्रा है। लम्बी बीमारी के बाद चल बसी। शादी नहीं हुई थी उसकी। होती भी तो कैसे? उसने अपने पिताजी के सामने प्रण जो ले लिया था कि अगर उसकी शादी मुझसे नहीं हुई तो वह आजन्म कुंवारी रहेगी। मेरा भी मानना था कि मैं उसके बिना जी ना सकूँगा पर न जाने कब यह बात भूल कर आगे बढ़ गया।


पत्नी सारा सामान समेट कर आ चुकी थी। वह खुश थी कि पूजा और हवन अच्छे से सम्पन्न हो गए, मेरी टीका टिप्पणी के बगैर। मैंने मज़ाक में कहा, “अब तू नहीं मरने वाली!” और यह कहते ही अचानक मुझे अपने ज्योतिष मित्र की कही एक बात याद आ गई – ‘पत्नी का अर्थ यह नहीं कि जिससे तुम ब्याहे गए। पत्नी वह जिसे तुमने अपनी जीवनसंगिनी माना।‘

मैं सोचने लगा, “अगर यह हवन दो दिन पहले हो गया होता तो?”

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