सत्येन्द्र – वृतान्त 8
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मेनका के अचानक यूँ आने और उसके हाव भाव देख कर माँ बहुत चिन्तित हो गई। यद्यपि मेनका सामान्य रूप से दिन बिताने की पूरी कोशिश कर रही थी पर उसकी माँ को साफ दिख रहा था कि कुछ भी सामान्य नहीं है। पर वह जब भी कुछ पूछने की कोशिश करती तो मेनका का एक ही जवाब होता, “कुछ नहीं माँ! बस थकान है। बातें कर कर के थक चुकी हूँ।”
माँ को पता था कि उसका यह उत्तर कोई उत्तर नहीं है पर क्या बोलती वह। आखिर हताश हो कर उसने मेनका को अपने हाल पर छोड़ दिया। मेनका के पिता अपने काम में बहुत व्यस्त रहते थे। देर से घर आते और जल्दी निकल जाते। उन्हें तो पता भी नहीं चला की घर में कुछ बदलाव आया है।
हफ्ते भर तक मेनका ने किसी के फोन का कोई जवाब नहीं दिया। आज कई दिनों बाद जब कंप्यूटर खोला तो देखा अलंकार के दस बारह ईमेल आ रखे हैं। उसे दुःख लगा कि उसकी वजह से अलंकार परेशान है इसलिए उसने उसके ईमेल का जवाब दे दिया –
प्रिय अलंकार,
कुछ हुआ है जो मैं अभी बताने की स्थिति में नहीं हूँ। समय आने पर सब कुछ बता दूँगी। मेरी चिन्ता मत करना। मैं बंगलौर में हूँ। मेरी वजह से तुम परेशान हो उसके लिए माफ़ी चाहती हूँ।
तुम्हारी,
मेनका
अलंकार को ईमेल भेजने के बाद उसने अपने बाकी ईमेल देखे पर किसी का जवाब नहीं दिया। काफ़ी देर तक वह स्क्रीन को यूँ ही ताकती रही फिर अचानक ना जाने क्या सोच कर उसने सत्येन्द्र को एक ईमेल लिख डाला।
सत्येन्द्रजी,
आप मेरे दोस्त, गुरु और मार्गदर्शक रहे हैं। आपने मुझे बहुत कुछ दिया है। पर उस रोज आपने जो किया वह मुझे मंज़ूर नहीं था। आपने अपनी ताकत के जोर से मुझे अबला साबित कर दिया। आपने मेरे शरीर ही नहीं मेरी रूह को भी खरोंच डाला है। आपसे और क्या कहूँ। आप समझदार हैं। आपको शायद अपने किए का एहसास हो गया होगा। मैं अब भी आपकी एक गुरु के रूप में इज्जत करती हूँ पर आपको अपना दोस्त, अपना हमदर्द नहीं मान सकती। आप में और बाकि लोगों में क्या फर्क है ये मैं समझने की कोशिश कर रही हूँ। आपने जो किया वह आपको नहीं करना चाहिए था।
मेनका
ईमेल भेजते ही वह फिर रो पड़ी। उसे समझ नहीं आ रहा था की सत्येन्द्र को ईमेल भेज कर उसने सही किया या गलत। वह अपने को संभाल ही रही थी की सत्येन्द्र का जवाब आ गया –
प्रिय मेनका,
जो हुआ उसे भूल जाओ। जो तुम चाहती थी मैंने वही तो किया। बाकि तो सब एक मिसअंडरस्टेंडिंग है। बैठ कर सुलझा सकते हैं।
सत्येन्द्र
सत्येन्द्र का यह सन्देश पढ़ते ही मेनका अपना आपा खो बैठी।
बहुत गिरे हुए हैं आप। बलात्कार को मिसअंडरस्टेंडिंग कहते हुए आपको शर्म नहीं आती। अरे थोड़ा तो शर्मसार हो जाइए अपनी हरकत पर। माफ़ी नहीं माँग सकते तो कृपया कर अपनी भाषा पर तो लगाम दीजिए। बड़ी बड़ी बातें करके इतना निम्न हो जाना आपको शोभा नहीं देता। मुझे तो घिन आने लगी है आप पर।
मेनका के इस सन्देश का सत्येन्द्र की ओर से कोई जवाब नहीं आया। पर इस बीच अलंकार का एक सन्देश आया था।
मेनका, एक बार फोन उठा लो प्लीज़। इतना तो कर सकती हो ना मेरे लिए?
मेनका ने सन्देश पढ़ा ही था की उसके फोन की घंटी बज उठी। अलंकार का फोन था। काँपते हाथों से उसने फोन उठाया ओर धीमे से बोली, “हैलो!”
“क्या हो गया तुमको मेनका? यार एक बार तो फोन उठा लेती। यहाँ चिन्ता में मेरी जान सूखे जा रही है। बात नहीं करनी थी तो कम से कम मेरे ईमेल का ही जवाब दे देती। क्या हुआ मेनका? कुछ तो बताओ?”
“फोन पर क्या बताऊँ अलंकार? दिल्ली वापस आने पर बता दूँगी।”
“कब आ रही हो तुम दिल्ली?”
“पता नहीं!”
“यार, ऐसा मत करो मेनका। तुम्हारी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा है की तुम परेशानी में हो। प्लीज़ कुछ को बताओ। या फिर मैं बंगलौर आ जाता हूँ!”
“अरे, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।”
“ऐसा कुछ नहीं हुआ है? तुम अचानक गायब हो। किसी को पता नहीं कि कहाँ हो। फोन नहीं उठा रही हो। ईमेल का जवाब नहीं दे रही हो। पुलिस थाने जा रहा था मैं पर सत्येन्द्र जी ने मना कर दिया। बोले सयानी है, कहीं चली गई होगी। वापस आ जाएगी। उनको क्या पता की मेरे ऊपर क्या गुज़र रही है। मुझे इतना गैर मत बनाओ मेनका! मैं बंगलौर आ रहा हूँ। कल।”
मेनका कुछ नहीं कह पाई।
“तुम्हारी चुप्पी को क्या समझूँ?”
“जो भी तुम चाहो!”
“ठीक है। कल शाम की फ्लाईट से निकलूँगा। पहुँचने में देर हो जाएगी इसलिए परसों सुबह मिलते हैं। तब तक अपने को संभालो प्लीज़!”
“ठीक है। गुड बाय!”, कहते हुए मेनका ने फोन काट दिया। खुद तो इतना टूटा और हारा हुआ कभी महसूस नहीं किया था उसने।
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