टाई वाला
अमूमन हर झाम का केंद्र टाई वाले होते हैं। वे दिखते नहीं हैं, पर होते हैं! उन सभी झामों में भी जिन्हें देख कर लगता नहीं की टाई वाले ऐसा कर सकते हैं। समय मिले तो सोचिएगा – क्या बिना टाई पहने संभव है इतना कुछ?
अमूमन हर झाम का केंद्र टाई वाले होते हैं। वे दिखते नहीं हैं, पर होते हैं! उन सभी झामों में भी जिन्हें देख कर लगता नहीं की टाई वाले ऐसा कर सकते हैं। समय मिले तो सोचिएगा – क्या बिना टाई पहने संभव है इतना कुछ?
सबसे पहले पहल जब एक नीले दाँत वाले तो देखा तो घबरा गया। सोचने लगा की ये क्या नई बला आ गई इंसानियत तो परेशान करने। मैं आधुनिक सामाजिक तानेबाने के कारण पैदा हुई मानसिक स्थितियों को कोसने लगा था।
समृद्धि एक ऐसा हाथी है जिसे सब अपने नजरिए से देखते हैं। पर अंततः नजरिया उसका जीतता है जिसके पास अपना नज़रिया पेश करने व सामूहिक रूप से प्रेषित करने का बल बूता होता है, चाहे वो नजरिया कितना भी संकीर्ण क्यों न हो!
प्रकृति बार बार आगाह करती है। हम बार बार उसे समझने की कोशिश सा करते हैं। बार बार सवाल उठाते हैं और जवाब ढूँढते हैं। फिर बार बार कुछ ठोस कदम उठाने की प्रतिज्ञा लेते हैं। पर अंततः भूल जाते हैं!
हम अक्सर फेसबुक को कोसते हैं पर वो तो महज एक औज़ार है। औज़ार की उपयोगिता, अनुउपयोगिता या दुरउपयोगिता तो उसे इस्तेमाल करने वाले निर्धारित करते हैं। किसी औज़ार को कोस कर क्या फायदा?
पहेली को एक छोटी सी कविता के रूप में प्रस्तुत किया जाए तो उसे समझने बूझने की प्रक्रिया और भी मजेदार हो जाती है। प्रस्तुत पहेलियाँ इसी प्रयोग का एक हिस्सा है। इस तरीके का प्रयोग कर बच्चों को कविता लेखन की लिए भी प्रेरित किया जा सकता है।
पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर चर्चा करना आसान है पर उनके संरक्षण की ओर कदम बढ़ाना काफी कठिन है। मुद्दा तब और भी गंभीर हो जाता है जब बात पहाड़ों की हो क्योंकि पहाड़ जितने सुंदर और बुलंद हैं, उतने ही नाजुक भी है।
बच्चों की होमस्कूलिंग हमारे लिए एक अभूतपूर्व निर्णय था। बच्चे भी हमारे इस निर्णय का औचित्य समझ नहीं पा रहे थे। ऐसे में मैंने होमस्कूलिंग पर एक कविता लिखी जो हमें याद दिलाती रहे कि जो हम कर रहे है वो क्यों कर रहे हैं।
जाने माने गायक बॉब डिलन ने 1962 में ‘ब्लोइंन इन द विन्ड’ लिखा और 1963 में गीत रिलीज हुआ। आज, पाँच दशक बाद भी यह गाना लोगों की जुबां पर है। चाह है की इसे हिन्दी में भी गाया और सुना जाए। इसी लिए यह हिन्दी अनुवाद।
किन्नौर की वह खूबसूरत घाटी कभी कभार धमाकों की आवाज़ से गूँज उठती थी। कुछ रोज ये धमाके देर रात भी सुनाई दिए। कारण बेहद व्यथित करने वाला था। पर क्या किया जा सकता है? मानव कल्याण की कीमत तो चुकानी ही होगी!