फेसबुक की दीवार
हम अक्सर फेसबुक को कोसते हैं पर वो तो महज एक औज़ार है। औज़ार की उपयोगिता, अनुउपयोगिता या दुरउपयोगिता तो उसे इस्तेमाल करने वाले निर्धारित करते हैं। किसी औज़ार को कोस कर क्या फायदा?
गौर से देखें तो असल मसला शायद यह है की हम वस्तुओं की जगह छवियों से इश्क़ करने लगे हैं। और छवियों से साथ बन गए रिश्तों को ही सच्चे सम्बन्ध मानने लगे हैं – अक्सर उन सम्बन्धों को ताक पर रखते हुए जो हमारे सामने खड़े हमारी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे होते हैं। और जब छवियाँ निराश करती हैं तो हम आईने से नाराज हो जाते हैं। खैर…
यहाँ फेसबुक का इस्तेमाल एक संज्ञा के रूप में किया गया है क्योंकि यह बातें लगभग सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस् पर लागू होती हैं। शुरुआत एक दोहे से करते हैं –
फेसभूखे जो देखन मैं चला,
फेसभूखा न मिलया कोय;
जब फेसबुक देखा आपणा,
मुझसा फेसभूखा ना कोय 🙂
…और अब फेसबुक पर एक पैरोडी ‘चांदी कि दीवार ना तोड़ी’ पर आधारित। आशा है इस रचनात्मक छूट के लिए गीतकार गुलशन बावरा व गायक मुकेश माफ़ कर देंगे। उनका दौर अब भी चल रहा होता तो उन्हें फेसबुक पर टैग कर देते।
फेसबुक की दीवार
फेसबुक की दीवार न तोड़ी,
‘फ्रेंडशिप’ का रिश्ता तोड़ दिया,
अपने ‘रिलेशनशिप स्टैटस’ को उसने
‘इट्स कॉमप्लीकेटेड’ कह छोड़ दिया,
फेसबुक की दीवार न तोड़ी,
‘फ्रेंडशिप’ का रिश्ता तोड़ दिया।कल तक जिसने कसमें खाई
हर ‘अपडेट’ में साथ निभाने की,
आज अपनी ‘प्राईवेसी’ कि खातिर
हो गयी वो बेगानी सी,
‘टाइमलाइन’ की भीड़ में दब के
रह गयी आह दीवाने की,
‘फ्रेंड’ ने ही अब ‘फ्रेंड’ का
ग़म से रिश्ता जोड़ दिया,
फेसबुक पर उसने मेरे
‘फ्रेंडशिप’ का दामन छोड़ दिया,
फेसबुक की दीवार न तोड़ी,
‘फ्रेंडशिप’ का रिश्ता तोड़ दिया।वो क्या समझें ‘फ्रेंडशिप’ जिनका
सब कुछ आधा पौना है,
फेसबुक की इस दुनिया में
दिल तो एक खिलौना है,
‘ऑर्कुट’ से दिल टूटता आया
दिल का बस यह रोना है,
जब तक चाहा ‘फ्रेंड’ बनाया
और जब चाहा छोड़ दिया,
अपने ‘रिलेशनशिप स्टैटस’ को उसने
‘इट्स कॉमप्लीकेटेड’ कह छोड़ दिया,
फेसबुक की दीवार न तोड़ी,
‘फ्रेंडशिप’ का रिश्ता तोड़ दिया।
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