चिरस्थायी समृद्धि का मूल मंत्र

समृद्धि एक ऐसा हाथी है जिसे सब अपने नजरिए से देखते हैं। पर अंततः नजरिया उसका जीतता है जिसके पास अपना नज़रिया पेश करने व सामूहिक रूप से प्रेषित करने का बल बूता होता है, चाहे वो नजरिया कितना भी संकीर्ण क्यों न हो!

यह बात खास कर मध्यम व उच्च वर्ग पर लागू होती है जिन्हें लगता है की ‘उनका’ सत्य ही ‘सबका’ सत्य है। खिड़की खोले और उससे बाहर झाँके बिना वो तय करना चाहते हैं मौसम कैसा होना चाहिए। अपने सत्य के लिए वो अक्सर ऑनलाइन और कभी कभार रामलीला मैदानों में जा कर जिंदाबाद मुर्दाबाद कर आते हैं। और फिर खो जाते हैं अपने सत्य में, नए सत्यों को बुनते हुए। पेश है उन्हीं आंदोलनकारियों और उनके सत्य से प्रेरित एक कविता।

चिरस्थायी समृद्धि का मूल मंत्र

देख टीवी में भ्रष्टाचार की खबरें
वो गुस्से में तमतमाया,
सुन आह्वाहन आन्दोलन का उसने
अपने मानस को जगाया,
व्यस्तता के बाद भी विरोध रैली में
जा कर वो चिल्लाया,
नागरिकता का कर्तव्य निभाकर ही
अपने घर वो वापस आया।

फिर कंप्यूटर खोल कर उसने
गूगल को दौड़ाया,
ढेर सारे निवेश विकल्पों में
अपना दिमाग लगाया,
अपने सोते पैसे को उसने
तुरत फुरत जगाया,
‘वैली व्यू’ की प्लाटिंग में उसने
कुछ पूंजी को लगाया।

कॉफी पी कर देर रात उस,
जब आखिर वो सुस्ताया,
स्वर्णिम भविष्य का चेहरा उसे
सामने नज़र आया,
उसमें वो था और भ्रष्टाचार मुक्त
नव समाज की काया,
किसान, मजदूर नहीं थे, ना थी
दरिद्रता की कोई छाया।

खेतों में सुन्दर इमारतें थी,
हिमनदियों में बाँध,
बुग्यालों में नई बस्तियाँ थी,
स्मार्ट फोन सबके हाथ,
एक जैसे लोगों को था
उन्हीं जैसों का साथ,
कोई नहीं था भ्रष्ट जो करे
इन सपनों को बर्बाद।

सफल जिंदगी, सफल समाज,
स्वप्न सारे साकार,
सम्पूर्ण जगत की एक दिशा,
सबका एक विचार,
प्रतिलिपियों की इस दुनिया में
सबका एक आकार,
समृद्धि का चिरस्थायी परिचय –
एकीकृत व्यव्हार!

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