सोचो समझो जोर लगाओ
पहेली को एक छोटी सी कविता के रूप में प्रस्तुत किया जाए तो उसे समझने बूझने की प्रक्रिया और भी मजेदार हो जाती है। प्रस्तुत पहेलियाँ इसी प्रयोग का एक हिस्सा है। इस तरीके का प्रयोग कर बच्चों को कविता लेखन की लिए भी प्रेरित किया जा सकता है।
इस प्रक्रिया के तीन मुख्य लाभ हैं –
- बच्चों का कविता से जुड़ाव
- कविता के माध्यम से, मूल पहेलियों के परे कुछ कहने का अवसर
- छंदबद्ध कविता लेखन का अवसर व अभ्यास
इस विचार का प्रयोग मैंने एक लिटरेचर फेस्टिवल में किया जहाँ मुझे छोटे बच्चों को कविता लेखन से रूबरू कराना था। बच्चों को पहेलियाँ बूझने में बहुत मज़ा आया। और फिर बेहद उत्सुकता के साथ उन्होंने अपनी पहेलियाँ कविताबद्ध की। प्रयोग सफल रहा। आप भी कर के देखें। मज़ा आएगा!
इस संवाद को और सजीव बनाने के लिए हर पहेली पूछने के बाद उसे समझने और बुझने के लिए एक काव्यात्मक आहवाहन भी तैयार किया जिसके बोल हैं –
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
सभी पहेलियों के उत्तर अंत में क्रमवार दिए गए हैं।
कुछ काव्यात्मक पहेलियाँ
1.
सिर नहीं है पर है एक गला,
हरदम करता ये सबका भला,
पर देखो! बिन वस्त्र, सरेआम,
लाज विहीन है कैसे ये खड़ा!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए,
तो झटपट उत्तर बोलो!
2.
सिर पर न टोपी, ना कोई बाल,
बस एक चुटिया, हाय कैसा ये हाल,
और ज्यूँ-ज्यूँ काम ये करते जाता,
अपना कद कुछ और कम पाता।
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
3.
वर्तमान में पैदा होकर,
भूत काल में रहता हूँ,
भविष्य मुझे बदल नहीं सकता,
सीना ठोक के कहता हूँ!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
4.
खाना खा कर फले, ये फूले,
पानी पी तुरन्त मर जावे,
जीवन के हर पल का साथी,
कभी लुभावे, कभी डरावे!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
5.
प्यारा, दुलारा, ये हरदम मेरा,
पर अन्य करें उपयोग,
कभी कभी ही बस कर पाऊँ
मैं इसका परयोग!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
6.
तेज दौड़ कोई पकड़ ना पाए,
रुक जावें तो काबू आए!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
7.
दो पिता और दो बेटे, मछली रहे थे मार,
सबसे हाथ एक लगी, शायद हो गए चार;
पहुँचे बेचने मछलियाँ वे मच्छी बाज़ार,
तीन मच्छलियों का वहाँ हो गया व्यापार,
पर दुखी नहीं थे, खुश थे, चौड़ी थी मुस्कान,
गणित उनका ठीक बैठ गया, पूरे हुए अरमान!
क्यों? कैसे?
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है उत्तर बूझ गए तो,
झटपट उसको बोलो!
8.
किसी ने नहीं देखा है उसे, ना ही कोई देखेगा,
बीते हुए समय सा उसको कोई नहीं फैंकेगा;
वो है नहीं पर होगा जरूर, उसका होना तय है,
वो जीवन का सुर मधुर, वो जीवन का लय है!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
9.
खरीद पर था काला, इस्तेमाल पर हुआ वो लाल,
कर इकठ्ठा बाहर किया जब स्लेटी हो गया हाल,
तिस पर भी ये उपयोगी, इसके काम अनेक,
अपने स्लेटी रंग रूप में भी ये बेहद ही नेक!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
10.
उस दिन शनिचर, रमेश, सुरेश, निकले खाने पान,
रमेश सुरेश बिन दाम चुकाए छोड़ गए दूकान,
तिस पर भी पनवाड़ी ना भड़का, ना घटा किसी का मान,
बिन खर्चे खर्चा करने की अपनी अलग ही शान!
क्या? कैसे?
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये उत्तर बूझ गए तो,
झटपट उसको बोलो!
11.
कोने में जरूर रहता हूँ,
पर इरादे का हूँ पक्का,
पूरी दुनिया घूम रहा हूँ,
बिन हुए मैं हक्का बक्का!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
12.
दुखी मन और निपट भूखे,
तुम बैठे कहीं अकेले,
खाली पेट भरन वास्ते
खा सकते कितने केले?
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
कितने केले गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
13.
हर गरीब उसे पाए,
हर अमीर उसे चाहे,
जो भी उसे खाए,
वो पक्का मर जाए!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए
तो झटपट उत्तर बोलो!
14.
दौड़ सकत पर चल ना पाए,
मुख है मगर ना बतियाए,
कभी सिकुड़त, कभी फूलत,
घाट अनेक पर नहीं नहाए!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
कौन है ये गर बूझ गए
तो झटपट उत्तर बोलो!
15.
फैंक नहीं पर पकड़ सकते हो,
प्रेम नहीं है पर जकड़ सकते हो!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
कौन है ये गर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
16.
रेड हाउस में रेड्डी रहता, ग्रीन हाउस में ग्रीनी,
पिंक हाउस में पिंकी रहती, ड्रीम हाउस में ड्रीमी,
एक बात है पूछनी मुझको, तुम से तेरा जीनी,
व्हाईट हाउस में सुख रही ये किसकी चादर झीनी?
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
किसकी चादर बूझ गए तो,
झटपट उत्तर बोलो!
17.
मैं उसे देखूँ, जब भी मैं चाहूँ,
जहाँ खड़ा वो, वहीं उसे पाऊँ,
दिख नहीं सकता पर उसको मैं,
यहाँ, वहाँ, चाहे कहीं मैं जाऊँ।
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
कौन है ये गर बूझ गए तो
झटपट उत्तर बोलो!
18.
पता नहीं क्यों उसको है ये अजीब परेशानी,
सफाई की चाहत में मानो मरे जा रही नानी,
दोनों हाथों से दिन भर करता वो अपना मुँह साफ़,
मानो चेहरे पर लगे हुए हों पिछले जन्मों के पाप!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
क्या है ये गर बूझ गए तो
झटपट उत्तर बोलो!
19.
मैं उसे निगलूँ तो जीवन पाऊँ,
वो मुझे निगले तो मैं मर जाऊँ!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
कौन है ये गर बूझ गए तो
झटपट उत्तर बोलो!
20.
नभ में जन्म, पर वास नहीं,
घर उसका आकाश नहीं,
अकेले अकेले, लगे उसे अकेला,
जीवन अनगिनत सखियों का मेला,
बन्दर सी उछलें पर दीवार न चढ़ पाए,
कभी ये डराएँ, कभी ये लुभाएँ!
सोचो, समझो, जोर लगाओ,
बुद्धि के पट खोलो,
कौन है ये गर बूझ गए तो
झटपट उत्तर बोलो!
उत्तर
1. बोतल
2. मोमबत्ती
3. इतिहास
4. आग
5. नाम
6. साँस
7. दादा, पापा और बेटा मछली पकड़ रह थे, यानि तीन लोग
8. आने वाला कल
9. कोयला
10. क्योंकि शनिचर ने पैसे दिए
11. डाक टिकट
12. एक, क्योंकि दूसरा केला खाते समय पेट खाली नहीं होता
13. कुछ नहीं
14. नदी
15. सर्दी जुखाम
16. अमेरिका का प्रेसिडेंट
17. शीशा
18. घड़ी
19. पानी
20. बारिश