सोने का अंडा देने वाली मुर्गी
सोमेश्वर से थोड़ा आगे, बागेश्वर से थोड़ा पीछे – सब जगह का होते हुए भी कहीं का ना होता हुआ एक पुराना गाँव है। पहाड़ की चोटी पर बसे इस पुराने गाँव में, पुराने समय में, एक पुराना आदमी रहता था – रमदा। रमदा के जमाने में कृषि वैज्ञानिक पैदा नहीं हुए थे इसलिए पहाड़ की चोटी पर भी खेती होती थी। रमदा के पास खाने को भोजन था, बकरियाँ थी, गाय बैल थे, और थी एक मुर्गी। मुर्गी हर दिन दो अंडे देती थी। रमदा और उसका परिवार चाव से अंडे खाते थे। उनके उस सुनहरे जीवन में उन्हें कभी मालूम ही नहीं पड़ा कि उनकी मुर्गी सोने के अंडे देती है।
रमदा के गुजर जाने के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके बेटे पनदा पर आई। यूँ तो पनदा का जीवन भी आराम से कट रहा था पर तब तक समाज में पैसे की भूख जग चुकी थी। क्रय विक्रय जीवन का अभिन्न अंग बनने लगे थे। इसीलिए उन चीजों की खेती अधिक होने लगी जिनके बाजार में अच्छे दाम मिलते थे यद्यपि इसके कारण लोगों के भोजन की पौष्टिकता में कमी आने लगी थी। दवा दारू के बढ़ते खर्च के कारण पनदा ने निर्णय लिया की मुर्गी का एक अंडा बेचा जाएगा। बेचने गए तो मालूम पड़ा की अंडा सोने का है। उसका मन तो बहुत हुआ कि दोनों अंडे बेच दिए जाएँ पर परिवार की सेहत के मद्देनजर उसने अपने आप को ऐसा निर्णय लेने से रोक लिया।
रमदा अभी पूरा बूढ़ा भी नहीं हुआ था कि उनका बेटा हरदा परिवार की जिम्मेदारियाँ उठाने में दिलचस्पी लेने लगा। वो नए जमाने का लड़का था। उसकी भूख अधिक थी। वह मुर्गी के दोनों अंडे बेचना चाहता था पर रमदा ने साफ मना कर दिया।
हरदा मानता था की आधुनिक वाणिज्यिक सोच और विज्ञान बहुत कमाल की चीजें हैं। आधुनिक शिक्षा ने उसे सीखा रखा था की मुर्गी को मार का सारे अंडे एक साथ नहीं निकाले जा सकते। इसलिए नए रास्तों की खोज के लिए वह विशेषज्ञों से मिला। इन मेल मिलापों के बाद वह इस नतीजे पर पहुँचा की विशेषज्ञों के मदद से उसकी आमदनी बढ़ सकती है।
विशेषज्ञों ने उसे बताया की उन्होंने एक ऐसा तरीका ईज़ाद किया है जिससे मुर्गी दो की जगह चार या उससे भी अधिक अंडे देने लगेगी। यह सुन कर हरदा खुश हो गया। उसे पहली बार लगा की पलायन के बगैर भी जीवनस्तर आधुनिक हो सकता है। इस खयाल के साथ जब वह सोया तो सपने में गिर्दा, उसका चाचा जो सरकारी जंगल की आग बुझाते हुए 10 साल पहले मर चुका था, प्रकट हुआ। गिर्दा बोला, “अरे हरुआ, मुर्गी के मानस को समझ। वह दो अंडे देने के लिए ही बनी है। इन बेवकूफ़ों की बात मत सुन। इन्हें तो बस प्रयोग करना है और परियोजना बनानी है। इनका लक्ष्य तो बस रिपोर्ट होता है रे! समझने की कोशिश कर – तेरी मुर्गी नहीं बल्कि तू है इनके शोध का विषय। तुझे ज्ञान देने वाले ये सब लोग यहाँ थोड़े ही रहते हैं! इनके घर तो तराई भाभर दिल्ली बंबई में हैं। मेरी बात ना मान जा नहीं तो आखिर में तू ही मारा जाएगा।“
जाड़े की उस सर्द रात में गिर्दा को कोसता हुआ हरदा जागा और बड़बड़ाने लगा – “यार चचा, तुम मर कर भी मुझे जीने नहीं देते। काफल की टहनी से आग बुझाने वाले तुम क्या जानो की विज्ञान क्या होता है।”
अभी रात बाकी थी पर हरदा सोया नहीं। वह बेसब्री से सवेरे का इंतज़ार करता रहा। पौ फटते ही उसके सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को विशेषज्ञों द्वारा दिया गया स्टेरॉइड का इन्जेक्शन लगाया और अपनी नित्यक्रिया भूल मुर्गी को ताकता रहा – आधुनिक हस्तक्षेप के फल के इंतज़ार में। आखिरकार अंडे निकलने लगे। एक… दो… तीन… चार…! हरदा खुशी से झूम उठा। चार अंडों के उल्लास में वह देख ही नहीं पाया की उसकी मुर्गी अब अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही है।
जब विशेषज्ञों को चार अंडों की जानकारी मिली तो वे एक दूसरे की जयजयकार करने लगे। उन्हें पता था की अंडों की गुणवत्ता कम हो गई है पर उनके काम की समीक्षा तो संख्याबल पर होनी थी। उन्हें यह भी पता था की सोने के चार अंडे देने वाली मुर्गी अब पैरों पर उठ नहीं पाएगी पर उनकी सेवानिवृति तक जीवित तो रहेगी ही। टेबल में समोसे सज चुके थे और माइक की टेस्टिंग होने लगी थी।