चुनाव, विक्रम और बेताल
“…तो तुम किसे चुनते हो राजन? उसे जिसकी विचारधारा में निहित हिंसा के कारण तुम या तुम्हारे प्रियजन मर सकते हैं या उसे जिसकी विचारधारा तुम्हारा सब कुछ चुरा कर तुम्हें सड़क पर ला कर खड़ा कर सकती है?”, वेताल ने हँसते हुए विक्रम से पूछा।
“चुनाव जरूरी है क्या वेताल?”
“हाँ विक्रम। तुम बालिग हो। तुम्हें कुछ तो चुनना ही पड़ेगा”, वेताल बोला।
“तो मैं चोर को चुनूँगा वेताल।”
“और वह क्यों?”
“क्योंकि अगर मैं जिंदा रहा तो धन फिर से अर्जित कर सकता हूँ पर अगर मर गया तो…”
“तुमने फिर अपना मुँह खोल दिया राजन इसलिए मैं तो चला!”, यह कहते हुए वेताल उड़ गया।
वेताल को लाने के लिए एक बार फिर विक्रम वापस चल पड़ा। वेताल को लक्ष्य तक पहुँचाने से ज्यादा विक्रम को उस कहानी का इंतज़ार था जिसमें चुनाव के लिए कोई तीसरा विकल्प भी हो।
Nice!
I think It was बेताल in our childhood now it has grown up and become वेताल.
शुक्रिया। गलती सुधार दी है।