टोकरी की सीमा – वृतान्त 2
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ सीमा!”, मैं कुछ पल की चुप्पी के बाद अचानक बोल बैठा और बोलते ही दूसरी ओर की खिड़की के बाहर ताकने लगा। मैंने सोचा कि वो सकुचाएगी, शरमाएगी, और फिर मान जाएगी। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
विविध विषयों पर लिखी गईं जीवन्त कथाएँ – कुछ आधे से तीन घंटों की फिल्मों जैसी तो कुछ वेब सीरीज सी। कुछ पूर्व लिखित तो कुछ प्रकाशन के समय लिखीं गई – पाठकों से साथ साथ आगे बढ़ती हुईं।
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ सीमा!”, मैं कुछ पल की चुप्पी के बाद अचानक बोल बैठा और बोलते ही दूसरी ओर की खिड़की के बाहर ताकने लगा। मैंने सोचा कि वो सकुचाएगी, शरमाएगी, और फिर मान जाएगी। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आज फिर सीमा की याद आ गई। यूँ तो सीमा की कोई सीमा नहीं होती पर जिसकी सीमा होती है उसकी भी सीमा नहीं होती। बात थोड़ी टेढ़ी और गैरजरुरी सी लगती है पर इसे संभाल कर रखियेगा – आगे काम आएगी!
चाबी, हमेशा की तरह, बिजली मीटर के बॉक्स के ऊपर थी। उसने भारी मन से दरवाजा खोला। वह चाहता था कि उसे बंद दरवाजे के भीतर कोई इंतज़ार करता हुआ मिल जाए, यह जानते हुए भी की बंद दरवाजों के पीछे केवल खामोशी रहती है।
इस पूरे हादसे के दौरान स्नेहलता आज पहली बार खुल कर रोई थी। मेनका भी अलंकार के अलावा किसी के सामने कमजोर नहीं पड़ी थी। वैसे कमजोर तो वह अब भी नहीं थी। वे दोनों तो बस आपकी बेबसियों को आत्मसात कर रहे थे।
शाम ढलने से पहले सत्येन्द्र गिरफ्तार हो चुका था। मीडिया में सनसनी फैल गई। बलात्कारी तो अक्सर अनपढ़, गरीब या गुंडा होता है पर अब सभ्य समाज में भी यह होने लगा? जितने लोग उतने सवाल, उतनी अटकलें।
सारी बातें बताई मेनका ने अलंकार को – अपने छात्र जीवन का अनुभव, सत्येन्द्र के साथ बंगाल भ्रमण, कल्कत्ते की वह शाम, उसके बाद के अंतरंग अनुभव और वह भयावह हादसा। फिर मेनका का बंगलौर चले आना और सत्येन्द्र का ईमेल।
मेनका के अचानक यूँ आने और उसके हाव भाव देख कर माँ बहुत चिन्तित हो गई। यद्यपि मेनका सामान्य रूप से दिन बिताने की पूरी कोशिश कर रही थी पर उसकी माँ को साफ दिख रहा था कि कुछ भी सामान्य नहीं है।
जो हम चाहते हैं उसकी आस लगाते है।पर कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं जिनके मिलने के बारे में हम सोचते ही नहीं, या फिर सोचना बंद कर देते हैं। इसका अर्थ यह नहीं होता की हमने उसे चाहना बंद कर दिया है। हम बस मन को मना लेते हैं की सोचना मना है।
साथ चलते चलते वे अच्छे दोस्त बन गए। अलंकार वकील जरूर था पर बात बनाने में अभी माहिर नहीं हुआ था। वह कुछ कहना चाहता था पर समझ नहीं पा रहा था की कैसे कहे इसलिए एक दिन बिन मौके ‘आई लव यू’ कह बैठा।
जानती हूँ की हर मर्द एक सा नहीं होता पर अगर फिर से कोई वैसा ही कोई मिल गया तो पूरी तरह से टूट जाऊँगी। अभी कम से कम जी तो पा रही हूँ। वैसे हर औरत के जीवन में एक आदमी का होना जरुरी भी तो नहीं है।