सत्येन्द्र – वृतान्त 12
चाबी, हमेशा की तरह, बिजली मीटर के बॉक्स के ऊपर थी। उसने भारी मन से दरवाजा खोला। वह चाहता था कि उसे बंद दरवाजे के भीतर कोई इंतज़ार करता हुआ मिल जाए, यह जानते हुए भी की बंद दरवाजों के पीछे केवल खामोशी रहती है।
चाबी, हमेशा की तरह, बिजली मीटर के बॉक्स के ऊपर थी। उसने भारी मन से दरवाजा खोला। वह चाहता था कि उसे बंद दरवाजे के भीतर कोई इंतज़ार करता हुआ मिल जाए, यह जानते हुए भी की बंद दरवाजों के पीछे केवल खामोशी रहती है।
इस पूरे हादसे के दौरान स्नेहलता आज पहली बार खुल कर रोई थी। मेनका भी अलंकार के अलावा किसी के सामने कमजोर नहीं पड़ी थी। वैसे कमजोर तो वह अब भी नहीं थी। वे दोनों तो बस आपकी बेबसियों को आत्मसात कर रहे थे।
सारी बातें बताई मेनका ने अलंकार को – अपने छात्र जीवन का अनुभव, सत्येन्द्र के साथ बंगाल भ्रमण, कल्कत्ते की वह शाम, उसके बाद के अंतरंग अनुभव और वह भयावह हादसा। फिर मेनका का बंगलौर चले आना और सत्येन्द्र का ईमेल।
साथ चलते चलते वे अच्छे दोस्त बन गए। अलंकार वकील जरूर था पर बात बनाने में अभी माहिर नहीं हुआ था। वह कुछ कहना चाहता था पर समझ नहीं पा रहा था की कैसे कहे इसलिए एक दिन बिन मौके ‘आई लव यू’ कह बैठा।
जानती हूँ की हर मर्द एक सा नहीं होता पर अगर फिर से कोई वैसा ही कोई मिल गया तो पूरी तरह से टूट जाऊँगी। अभी कम से कम जी तो पा रही हूँ। वैसे हर औरत के जीवन में एक आदमी का होना जरुरी भी तो नहीं है।