ओ बसन्त लौट के आओ
मैंने अपनी पहली कविता 11 मार्च, 1985 में लिखी। आयु थी 15 वर्ष। तारीख इसलिए पता है क्योंकि यह कविता एक नई डायरी के पहले पन्ने में दर्ज की गई थी। वह डायरी बरसों तक मेरी साथी बनी रही।
उस डायरी में बंद कविताएँ मैंने एक दो लोगों को छोड़ कभी किसी के साथ साझा नहीं की। कोशिश है की उनमें से कुछ, संदर्भ के साथ, यहाँ प्रकाशित करूँ। इसलिए पाँगती.इन की शुरुआत अपनी लिखी पहली कविता से कर रहा हूँ।
यह कविताएँ इसलिए नहीं लिखी कि मुझे कवि बनना था वरन इसलिए की लिखने से मन हल्का हो जाता था। इस पहली कविता के पीछे भी एक रोचक कहानी है। सारा किस्सा तो नहीं बता सकता पर सार यह है की एक पड़ोसी ने घरवालों से मेरी शिकायत की। उन्होंने पहले ही मुझे शिकायत करने की धमकी दे दी थी। क्योंकि शिकायत पूर्णतया झूठी थी, मुझे विश्वास था की जब बात उठेगी तो मुझसे मेरा पक्ष पूछा जाएगा।
शिकायत हुई। बात उठी। पर मेरा पक्ष पूछा नहीं गया। बिना जिरह के मैं आरोपी से अपराधी घोषित कर दिया गया। मैं दुखी भी था और क्रोधित भी। न सुने जाने का दर्द बहुत विशाल होता है। उस दर्द को लेकर मैं छत पर चला गया। घर के सामने एक पेड़ था जो पतझड़ के कारण उतना ही नग्न था जितना मैं लुटा हुआ महसूस कर रहा था। मैं काफी समय तक उसे एकटक ताकता रहा। ना जाने कब मेरा मन खुदबखुद कुछ शब्द पिरोने लगा। जब मुझे लगा की उन शब्दों से कुछ कविता सी बन रही है तो मैं तेजी से अपने कमरे में गया, एक नई डायरी उठाई और उसके पहले पन्ने में अपनी पहली शब्दमाला की छवि अंकित कर दी।
उस पहली कविता को मैंने कोई शीर्षक नहीं दिया था। ‘उम्मीद’ को ‘एहसास’ लिखा था। ऐसी कुछ त्रुटियों को ठीक कर आज पहली बार यह कविता सामाजिक तौर पर साझा कर रहा हूँ। रियायती मन से पढ़िएगा।
ओ बसन्त लौट के आओ
उस सुखे नंगे पेड़ को देखो
सह रहा है आँधी को,
केवल इस उम्मीद में की
बसन्त लौट कर आएगा।सह सकेगा दुख को जो
सुख का फल वो ही पाएगा,
गर्मी पतझड़ सहने पर ही
बसन्त लौट कर आएगा।सह नहीं सकते दुख को जब
सुख कि कैसी आशा है तब,
सहो आँधियों को, शिखरों पर चढ़ जाओ,
हो सके तो गगन के सितारे तोड़ लाओ,
दुख में भी सुख के गीत गाओ,
तभी कह सकोगे –
“ओ बसन्त, लौट के आओ!”
15 साल की उम्र में इतनी सुन्दर, भावप्रकाश और गंभीर कविता! ❤
उम्दा
I still remember your room which was full of books….no wonder u could write so well at that age.. think you even had a home made periscope…
my room was a dumping ground 🙂
बहुत सुंदर ददा ।
बेहतरीन शुरुआत
I wrote most poems venting out my helplessness, anger or any emotion that I couldn’t altogether handle when I started out. Felt so good to read this
keep writing. its a lifelong self help therapy 🙂
वाकई बहुत सुंदर उद्भावना है।
Great dear!
१५ वर्ष की आयु में इतनी सुन्दर कविता लिखने की
कला से मन प्रसन्न हुआ।
This is awesome Navi ji
thanks
१५ वर्ष की अल्पायु में इतनी भावपूर्ण कविता, निश्चित ही बधाई के पात्र हैं आप।