हैरी का ईष्ट देवता
हैरी की एक छोटी सी दुकान है चौराहे पर। वो पैदा तो हरिया हुआ था पर जब परिवार ईसाई बना तो उसका नाम हरिया से हैरी हो गया। पिताजी हरदा हेनरीदा हो गए पर ईजा ईजा ही रही।
एक दिन मैंने हैरी से पूछा की उसके बाबू ने छुआछूत के चक्कर में धर्म बदला या पैसे के चक्कर में? शान्त मन का हैरी मुस्कुराते हुए बोला, “बाबू कहते हैं मसाण ने परेशान कर रखा था। दारू पी कर हमें गाली देते हुए जो मर गए थे चचा। मरने के बाद भी जीना हराम कर रखा था बल। अब क्रीच्चन को मसाण कैसे परेशान कर सकता है, बताओ?“
बात आगे ले जाने का मन तो था पर मैंने कुछ नहीं पूछा। थोड़ा विचित्र सा परिवार है हैरी का। उसका छोटा भाई विक्टर आजकल टी-शर्ट की कॉलर ऊपर किए हुए घूमता दिखाई देता है। दो साल कोशिश करने के बाद जब सरकारी नौकरी में कोई जुगाड़ नहीं बैठा तो उसने पादरी बनने का मन बना लिया। मुसीबत एक ही है – गर्दन के ठीक पीछे त्रिशूल का टैटू। क्योंकि अलमोड़े में टैटू हटाने वाला कोई नहीं है इसलिए वो दिल्ली जाने का इंतज़ार कर रहा है ताकि कॉलर नीचे कर वो आराम से धर्मज्ञान बाँट सके।
दोनों भाई काफी अलग किस्म के हैं। विक्टर हमेशा टिप टॉप रहना पसंद करता है पर हैरी अलग ही दुनिया का वाशिंदा है। कभी पायजामे के साथ टी शर्ट तो तभी हाफ पैंट के साथ कुर्ता… हर असंभव को संभव करने की विलक्षण क्षमता है उसमें। इसलिए आज जब वो सूट पहने दिखाई दिया तो बहुत अटपटा लगा। शादियों का मौसम भी जा चुका था।
“क्या बात है हैरी गुरु! आज तो हीरो लग रहे हो। सूट बूट पहन कर कहाँ चले?”, मैं बिन पूछे न रह सका।
“गाँव जाना है भाईजी। जागर है!“
“अरे! तुम कब से जागर लगवाने लगे। फिर धर्म बदल दिया क्या?”
“अरे नहीं भाईजी! मानता तो अब भी ईशू को ही हूँ। पर ईष्ट देवता तो ईष्ट देवता ही हुआ ना!”