ख़ामख़ा
यह कहानी ख़ामख़ा की है। और शायद नहीं भी। एक जाने माने सूफी कव्वाल के मुँह से सुनी थी मूल कहानी। पता नहीं यह कहानी किसने और कब लिखी पर जब भी लिखी बेमिसाल लिखी। यह उसी अद्भुत कहानी का पुनःकथन है।
कथाओं का पुनःकथन दो तरीकों से किया गया है। पहले तरीके में किसी लोक कथा, या अन्य किसी कथा को, कथावाचन के उद्देश्य से ज्यादा चटपटा या नाटकीय बना कर पेश किया गया है। इनमें वो कथाएँ भी हैं जिनका अन्य भाषा से अनुवाद किया है। दूसरे तरीके में किसी कथानक के संदर्भ में बदलाव किया गया ताकि कह दी गई बातें कुछ और भी कह सकें।
यह कहानी ख़ामख़ा की है। और शायद नहीं भी। एक जाने माने सूफी कव्वाल के मुँह से सुनी थी मूल कहानी। पता नहीं यह कहानी किसने और कब लिखी पर जब भी लिखी बेमिसाल लिखी। यह उसी अद्भुत कहानी का पुनःकथन है।
राजू गुरु की चाय की दुकान में चली चर्चा एक जंगल की जिसे सुना एक भूत ने बनाया है। एक ऐसे दौर में करोड़ों पेड़ों का जंगल उग आया जब उत्तराखंड में जंगल खत्म होने की कगार पर हैं। क्या सच में मसला भूत का है या कहानी कुछ और ही है?
कहते हैं की हर दस किलोमीटर में भाषा का स्वरुप बदल जाता है। मुहावरे और लोकोक्तियाँ बदलने लगती हैं। कुछ ऐसा ही लोक कथाओं के साथ भी होता है जो जगह और समय के अनुसार अपने को नए रंग में ढाल लेतीं हैं। ऐसी ही एक अद्भुत कथा है फ्यूंली की।