टोकरी की सीमा – वृतान्त 2
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ सीमा!”, मैं कुछ पल की चुप्पी के बाद अचानक बोल बैठा और बोलते ही दूसरी ओर की खिड़की के बाहर ताकने लगा। मैंने सोचा कि वो सकुचाएगी, शरमाएगी, और फिर मान जाएगी। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ सीमा!”, मैं कुछ पल की चुप्पी के बाद अचानक बोल बैठा और बोलते ही दूसरी ओर की खिड़की के बाहर ताकने लगा। मैंने सोचा कि वो सकुचाएगी, शरमाएगी, और फिर मान जाएगी। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आज फिर सीमा की याद आ गई। यूँ तो सीमा की कोई सीमा नहीं होती पर जिसकी सीमा होती है उसकी भी सीमा नहीं होती। बात थोड़ी टेढ़ी और गैरजरुरी सी लगती है पर इसे संभाल कर रखियेगा – आगे काम आएगी!