चुनाव

चुनाव, विक्रम और बेताल

बेताल को लाने के लिए एक बार फिर विक्रम वापस चल पड़ा। बेताल को लक्ष्य तक पहुँचाने से ज्यादा विक्रम को उस कहानी का इंतज़ार था जिसमें चुनाव के लिए कोई तीसरा विकल्प भी हो।

लोकतंत्र का ठेका

आज से जात बिरादरी उतना मायने नहीं रखेगी क्योंकि ग्राम और जिला पंचायत के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। पर यह बात शराबी नहीं जानते इसलिए अभी भी अँधेरे को, पेड़ों को और हवा को गालियाँ देते हुए घूम रहे हैं। इनमें से कई, कई दिनों से नशे में है। एक निजी निर्णय का इतना लाभ कभी कभार ही मिलता है।